किसी प्रांत के महामात्य एक संत के आश्रम के पास से गुजर रहे थे । संत के प्रति सम्मान प्रकट करने और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा से वह आश्रम में गए । उन्होंने कहा , राज्य की देखभाल में मेरा लगभग पूरा समय लग जाता है । मैं सत्संग आदि में भाग नहीं ले सकता । क्या आप मेरे जैसे व्यस्त आदमी के लिए एक - दो वाक्य में धर्म का सार बता सकते हैं ? संत ने उत्तर दिया , अवश्य महामहिम । वह आगे बोले , मैं आपके हित में इसे एक ही शब्द में बता सकता हूं । और वह है- मौन ! और मौन किसकी ओर ले जाता है ? ध्यान की ओर ध्यान क्या है ? मौन ! दरअसल , मौन एक तरह की साधना है । यह साधना कर्मरत रहते हुए भी की जा सकती है । हो सकता है कि पहले मौन लगातार भंग हो , पर नियमित अभ्यास से यह सध जाएगा । इससे चेतना गहरी सतह से निकलकर ऊपर की ओर उठने लगती है । महात्मा गांधी भी इसे आत्मविश्वास , सेहत और सफलता का आधार मानते थे । उनका मानना था कि यह तनाव से मुक्त कर शांति की ओरले जाता है और दुनिया में जिन्होंने भी कुछ काम किया है , उनके लिए शांत चित्त पहली प्राथमिकता रही है । मौन मन को शक्तिशाली बनाता है और जब मन शक्तिशाली हो जाए , तो किसी प्रकार का डर , क्रोध , चिंता व उत्सुकता नहीं रहती ।
मौन के अभ्यास से समस्त मानसिक विकारसमाप्त हो जाते हैं । इंद्रियां संवेदनशील हो जाती हैं और हम बेहतर निर्णय ले पाते हैं । यूनानी शासक मिनांडर जो भारत आक्रमण के लिए आया और फिर यहीं का होकर रह गया , मौन की अभ्यास क्रिया से काफी प्रभावित था । मिनांडरने बौद्ध गुरु नागसेन से दीक्षा ली और मौन की ताकत को समझा ।