बात अजीब लग सकती है , लेकिन यह एक ऐसी सच्चाई है , जिससे हर कोई रूबरू होने से बचना चाहेगा । यदि कोई कहे , आप स्वयं को अंतिम आदमी के पायदान पर रखकर देखिए और फिर अनुभव करिए अपनी मनोदशा । आप सलाह देने वाले व्यक्ति को पागल या बेवकूफ समझ सकते हैं और सोच सकते हैं , भला एक उच्च शिक्षित व्यक्ति समाज के सबसे निचले पायदान पर कैसे स्वयं को समझ सकता है ? लेकिन इसे समझिए , क्योंकि समाज के सबसे निचले पायदान पर जब आप स्वयं को रखेंगे , तब आपको उसी तरह बनना भी पड़ेगा । आपके अंदर सहन शक्ति , पवित्रता , सहजता और वास्तविकता का समावेश होने लगेगा । जो अनुभव उच्च शिक्षित या धनी - प्रतिष्ठित होकर नहीं हुए , वे सारे अनुभव ऐसी दशा में खुद को लाने पर होंगे ।
इससे पता चलेगा कि आपके शिक्षित और अपढ़ होने की स्थितियों में और आत्म - बोध में कैसा और कितना अंतर है ? गांधीजी ने अंतिम जन के रूप में स्वयं को रखकर देखने की सलाह इसीलिए दी है , ताकि हमारे अंदर बैठी बुराइयां , विकार , वासनाएं व अतिमहत्वाकांक्षाएं धीरे धीरे खत्म हो जाएं । सहज - सरल जिंदगी का यह गांधी मंत्र आजमाकर देखिए । बढ़कर घटना , किसी आकस्मिक घटना के कारण नहीं , बल्कि अंतिम जन के रूप में जीवन की दशा को समझने के लिए करिए । ऐसा करके अपने जीवन की निष्पक्ष समीक्षा कीजिए और विचारिए कि जीवन में शीलता , क्षमा और सहजता किस दशा में मिलती है ? यह स्वयं द्वारा स्वयं के बारे में किया गया सबसे बड़ा अनुसंधान होगा । स्वयं के प्रति यह सत्य का सबसे निष्पक्ष और सहज प्रयोग है ।