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हमारी खुशी- अक्सर हमारा दुख उन चीजों के लिए होता है ,जो वस्तुतः हमारी कभी थी ही नहीं || Sagar Research Center

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हमारी खुशी- अक्सर हमारा दुख उन चीजों के लिए होता है ,जो वस्तुतः हमारी कभी थी ही नहीं || Sagar Research Center

हमारी खुशी


अक्सर हमारा दुख उन चीजों के लिए होता है ,जो वस्तुतः हमारी कभी थी ही नहीं । हम अक्सर यह गफलत पालते हैं कि वह चीज हमारी थी और खो गई । या फिर वह चीज हमारी थी , जो हमें नहीं मिली । दोनों बातें सिरे से खारिज करने लायक हैं और इन पर हमारी खुशी निर्भर नहीं हो सकती । 

खुशी के साथ एक मजेदार बात है । ऐसा मालूम होता है कि वह बाहर कहीं है , मगर कस्तूरी की तरह वह हमारे भीतर मौजूद है । खुशी के साथ एक अनोखी बात यह है कि जब हम उसे अपने तक सीमित रखना चाहते हैं , तब वह मरने लगती है । एक स्वार्थी और ईर्ष्यालु व्यक्ति कभी खुश नहीं हो सकता , क्योंकि उसके अंतःकरण का आयतन बहुत सीमित होता है । वह चाहता है कि खुशी सिर्फ उसे मिले । 

वह इस बात से भी परेशान रहता है कि दूसरे खुश क्यों हैं ? एक स्वार्थी व्यक्ति ऊपर से बहुत खुदगर्ज और निजी सुख के लिए प्रयासरत मालूम होता है, लेकिन अपनी खुशी का सबसे बड़ा दुश्मन भी वही होता है । वह स्वार्थ , जलन और द्वेष में ही घुटता रहता है । उसे खुशी छू नहीं पाती , चाहे वह अपने आसपास सुख के सारे ही साधन क्यों न जुटा ले । दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा था , तमाम प्राणियों में एक मनुष्य ही है , जो हंस सकता है । 

शायद इसलिए कि सभी प्राणियों में उसी को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है । नीत्शे किस तरफ इशारा कर रहे हैं , यह समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है । हम समझ सकते हैं कि हंसी मनुष्य का सबसे बड़ा आविष्कार है । अब चूंकि यह मनुष्य का ही अविष्कार है , तो उसे हंसने से कोई नहीं रोक सकता , सिवाय खुद के ।

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