- बदलने की चुनौती का सामना कैसे करे ?
- अपने मन के विचार को स्वयं कैसे बदलें?
* चलिये हमलोग समझते है कि खुद के मन का समाधान कैसे निकले ।
सिद्धार्थ जब पहली बार अपने महल से बाहर निकले , तब उन्हें कुछ अद्भुत दृश्य दिखे । उन्होंने कुछ सवाल किए , पर उनकी जिज्ञासा का समाधान किसी ने नहीं किया । फिर एक दिन उन्होंने निश्चय किया , जब सवाल मैंने किए हैं , तब जवाब भी हमारे अंदर ही होना चाहिए । अब खुद को बदलने की चुनौती उनके सामने थी । जब जिज्ञासा या प्रश्न स्वयं से स्वयं के हों और वे चुनौती बनकर सामने खड़े हों , तो उनका समाधान भी खुद से करना होगा । यदि सवाल नए तरह के हैं , तो उनके जवाब भी नए तरह के होंगे । उन्होंने चिंतन शुरू किया और उसे जीवन की सबसे बड़ी चुनौती मानकर , उसी के अनुरूप समाधान खोजना शुरू कर दिया ।
जब अपने विचारों को बदलने की चुनौती हो , तो संकल्प व दृढ़ इच्छा शक्ति के बगैर उसका समाधान नहीं हो सकता । संकल्प के सामने विकल्प नहीं होना चाहिए ।
यदि विकल्प विचारों के किसी कोने में उपस्थित हो गया , तो छोटी चुनौती को भी जीता नहीं जा सकता ।
सिद्धार्थ इसलिए बुद्ध बने , क्योंकि उन्होंने विचारों को मौलिक समाधान की दिशा में देखा । जिंदगी में प्रगति के लिए विचारों का सकारात्मक दिशा में बदलना जरूरी है ।
विचारक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के अनुसार , जो विचारों को नहीं बदल सकते , वे किसी चीज को नहीं बदल सकते और बदलाव के बगैर प्रगति नामुमकिन है । विचारों के बदलाव से होने वाली प्रगति सबसे अलग होती है । वैसे भी , परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत सत्य है । इसलिए विचारों में मौलिक और नवीन बदलाव से उर कैसा ? जब सवाल उठने लगे और जिज्ञासा बढ़ती जाए , तब उनसे मौलिक , नवीन और उपयोगी ' तत्व ' निकलने लगते हैं । बुद्ध का जीवन और संदेश इसके प्रमाण हैं ।