दूसरों की बातों पर चिंतन - मनन करना और उसके सार को अपनाना या अपने जीवन में उतारना कहीं से भी गलत नहीं है । गलती तब होती है , जब हम उनकी बातों पर ही निर्भर रहने लगते हैं , और अपनी सोच व बुद्धि को विराम दे देते हैं ।
अपना सोच को कैसे ज्यादा बढावा दे ???
दोस्तो आप जानते ही होंगे, जैसे कि दूसरों के द्वारा कही गई बात को अपने अंदर समा लेना। खुद से ज्यादा दूसरे के बात पर निर्भर होना।
कौन सी बातें जॉर्ज बनार्ड शॉ के द्वारा कही गयी थी ??
ऐसे लोगों के लिए ही जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा था- कुछ लोग मरते तो बहुत पहले हैं, लेकिन दफनाए बहुत बाद में जाते हैं । उनके कहने का मतलब यही था कि ऐसे लोग बस दूसरों पर निर्भर हो जीते चले जाते हैं । दूसरो के बात को ज्यादा अमल करते है। दूसरों के बात को ज्यादा चिंतन करते है, दुसरो के बात के सहारे जीवन अर्पण करते है।
आइंस्टीन से एक बार किसी ने पूछा- आप एक विचारक में और एक विश्वासी में क्या फर्क करते हैं ? उन्होंने जवाब दिया , विचारक से 100 सवाल पूछो , तो 99 के बारे में वह कहेगा कि मुझे मालूम नहीं और जिस एक सवाल के संबंध में उसे मालूम होगा, उसके बारे में वह यही कहेगा कि मुझे मालूम तो है, पर जितना मालूम है, उतना ही बता रहा हूं । हो सकता है , यह भी अंतिम सत्य न हो । जबकि विश्वासी को जैसे सब कुछ पता होता है । उसे परमात्मा का घर , ठिकाना , स्वर्ग - नरक , सब पता है ।
विश्वासी परम ज्ञानी होता है , इसलिए हमारे अहंकार को जिज्ञासा के बजाय विश्वास करने में आनंद आता है । दरअसल , वह उन लोगों पर सवाल खड़ा करते हैं , जो विश्वास के नाम पर अपनी प्रज्ञा के दरवाजे बंद कर देते हैं ।
यहा बुद्ध की कही गई बात को हमेशा याद रखें । वह कहते थे , मेरी कही गई बातों को नाव समझो । ऐसी नाव , जो नदी पार करने में तो काम आती है , परंतु नदी पार करने के बाद उसे अपने कंधे पर ढोना बेवकूफी है । मर्ग यही है कि किसी के उपदेश पर गांठ बांधना बेवकूफी है । पहले उसे अपने स्तर पर मांजे , स्वविवेक को उसमें शामिल करें , फिर कोई धारणा बनाएं । ।