जब सोच नकारात्मक हो जाती है , तो वह सुख को भी दुख में बदल देती है । आमतौर पर देखा जाता है कि आजकल के भागदौड़ जिंदगी में लोगों की सोच सकारात्मक से कही ज्यादा नकारात्मक सोचती है , व करे भी तो क्या करे जितना नकारात्मक से दूर भागती है नकारात्मक उतना ही पीछे पर जाती है फिर भी हमे नकारात्मक से दूर तो होना ही है , इसलिए गलत सोच का चश्मा जितनी जल्दी हो, उतार देना चाहिए । बुरे विचार जितना दूसरों का नुकसान करते हैं , उतना ही खुद का भी करते हैं ।
लेखक इजरायलमोर एयवोर के मुताबिक , 'आपके विचार वहां तक ले जाते हैं , जहां आप जाना चाहते हैं । पर कमजोर विचारों में दूर तक ले जाने की ताकत नहीं होती । ' अक्सर अनैतिक कार्यों में लिप्त लोगों को धनवान और प्रतिष्ठित होते देख आदमी में नकारात्मक चिंतन जाग उठता है । अपनी ईमानदारी उसे मूर्खतापूर्ण लगती है । वह सोचने लगता है- क्या मिला मुझे थोथे आदर्शों पर चलकर ? और यह नकारात्मक चिंतन उसे भी दलदल में उतार देता है । समाज में भ्रष्ट और बेईमान लोगों की उत्पत्ति ऐसे ही गलत विचारों के संक्रमण से हुई । गलत सोच हमारी दुनिया को छोटा कर देती है । भीतर और बाहरी , हमारी दोनों दुनिया सिमट जाती हैं । तब हमें अपना छोटा सा विरोध भी गुस्सा दिलाने लगता है । छोटी सी सफलता भी अहंकार बढ़ाने लगती है , और थोड़ा सा दुख अवसाद का कारण बन जाता है । कुल मिलाकर , सोच ही गड़बड़ हो जाती है । हमारा चिंतन गुणों की ओर प्रवृत्त रहना चाहिए । निराशावादी और नकारात्मक मनुष्य अपने चारों ओर सिर्फ अभावों और दोषों का ही दर्शन करते हैं । लेकिन जो अभाव को भाव तथा दुख को सुख में बदलने की कला जानता है , उसी का जीना सार्थक है , और वही सही मायने में सफल इंसान है । अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला एलिनोर रूजवेल्ट कहती थीं , ' भविष्य उनका होता है , जो सपनों की सुंदरता पर यकीन करते हैं