हम प्रार्थना क्यों करते है?ओर किसके लिए करते है। एक मनुष्य अपने जीवन मे कुछ करे या न करे, पर प्रार्थना तो जरुर करता है पर क्यों करता है ये बात आपको पता है, नही जानते तो चलिये आज जानते है। 'प्रार्थना' इसलिए करते हैं कि सर्व - शक्तिमान परमात्मा उसे सुने । अपने मन के विचार को 'अप्रत्यक्ष' रूप से परमात्मा के सामने प्रकट करे। इसी भाव और आकर्षण के लिए मंदिरों में घंटे घड़ियाल बजते हैं , चर्च की घंटियां गूंजती हैं , मस्जिदों में अजान होती है और गुरुद्वारों में कीर्तन की धूम रहती है । मनुष्य अपने मन के भावना, अपनी मन के बात को अपनी पीड़ा को प्रकट करने के लिए संगीतमय बनाया है , ताकि परमसत्ता उसे सुन ले । सुनना बड़ी कला है । दूसरे की बात को आत्मसात करना बड़ी बात है । यह स्वीकार भाव हमें समर्पण तक ले जाता है । मनुष्य के पास एक महान अस्त्र है , और वह है 'विचार' । कोई भी क्रांति पहले विचार के रूप में ही हमरे अंदर प्रकट होती है । शब्द ही हमारे भीतर अनाहत नाद की तरह गूंजता है , इसे ही कबीर ने ' अनहद ' कहा है गगन गरजि बरसै अमी बादल गहिर गंभीर चहुं दिसि दमकै दामिनी , भीजै दास कबीर । हमारे यहां शब्द को ब्रह्म कहा गया है । हमारी कर्णेद्रिय एक सजग - सत्ता है , सारी दुनिया विविध स्वरों में गुंजित हो रही है , उसमें कर्म कोलाहल है , तो प्रकृति का मधुर संगीत भी ।
वृक्ष जैसे प्रार्थना की मुद्रा में खड़े हैं , नदियां अपने अनाम लक्ष्य की ओर दौड़ती बही जा रही हैं , निर्झर वेगवान होकर झर रहे हैं । प्रकृति के इस स्वर को सुनकर ही उससे संवाद किया जा सकता है । हमारे वेदों में भी संवाद - सूक्तों की बड़ी महिमा है । कवि अज्ञेय अपनी प्रसिद्ध कविता असाध्य वीणा में लिखते हैं हां मुझे स्मरण है / बदली - कौंध पत्तियों पर वर्षा - बूंदों की पट - पट / घनी रात में महुए का चुपचाप टपकना / चौंके खग - शावक की चिंहुक / शिलाओं को दुलराते वन झरनों के / द्रुत लहरीले जल का कल निनाद ।