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मन के तहखाने। सोचने और समझने की बाते। Zoysm

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जैसे मनुष्य का शरीर कई टुकड़ों के जोड़ से बना है , वैसे ही उसका मन भी चेतन , अचेतन , अतिचेतन आदि कई श्रेणियों में बंटा हुआ है । फिर भी , उसका शक्तिशाली मन बंधनों की परवाह नहीं करता । आदमी के चेतन मन ने अपने प्रवेश - द्वार पर एक सतर्क प्रहरी बैठा रखा है , जिसके कारण चेनन प्राणी ज्ञान - विज्ञान और समझदारी की नपी - तुली बातें करता है । लेकिन मनुष्य इस बात को जानता है कि उसके मन के तहखाने में भारी हलचल मची रहती है । वैर - विरोध , अपार घृणा , दमित वासनाओं और कुत्सित विचारों के विषधर फुफकारते रहते हैं । यह तो तय है कि मन का अचेतन हिस्सा अत्यंत शक्तिशाली है । विचारकों ने इसी के कारण इसे भंडार घर की उपमा दी है । जैसे किसी घर के स्टोर हाउस में कई पुरानी और अनुपयोगी चीजें बेतरतीब पड़ी होती हैं , वैसे ही अचेतन के प्रभाव में हम बिल्कुल बदल जाते हैं । अचेतन की सक्रियता से लेखक के विचार सक्रिय हो जाते हैं , वक्ता धाराप्रवाह बोलता है । क्रोधी धाराप्रवाह गालियां दे सकता है । पर उसके पॉजिटिव पक्ष भी हैं- वह हमारे अंतरतम का हिस्सा , हमारे मन के तहखाने में निवास करने वाली महाशक्ति है । हमारा प्रेम और हमारी भक्ति , ये दोनों इस तहखाने को स्वच्छ बनाते हैं । यह मंदिर के गर्भ - गृह की तरह है , जिसमें परमात्मा की प्रतिमा स्थित होती है । यही मन हमें बांधता और खोलता है । यह आसक्त भी करता है और अनासक्त भी । इस शक्ति के प्रभाव में हम दुनिया से नाता जोड़ते हैं , दूसरों का दुख भी हमें अपना मालूम पड़ता है , तभी तो मशहूर शायर अमीर उल्लास तस्लीम ने कहा है- तड़पती देखता हूं जब कोई शै / उठा लेता हूं अपना दिल समझकर ।

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