NASA Moon Mission: - चंद्रमा मिशन आज भी उतने ही जोखिम भरे हैं जितने 60 साल पहले थे। नासा का असफल पेरेग्रीन मिशन हमें याद दिलाता है कि इंसानों को चाँद पर वापस लाने में अभी कई साल लगेंगे। अमेरिकियों ने 1969 में हमारे समकालीन फ़ोन की तुलना में कम कंप्यूटिंग शक्ति के साथ लोगों को चाँद पर उतारा था। तो, आज हमें चाँद पर उतरना इतना मुश्किल क्यों लगता है?
यह बात कैसे माना जा सकता है कि नासा 1969 में चाँद पर उतर गया था, जबकि आज के समय में भी Soft Landing इतनी मुश्किल है? हां मानते है ये बात को मानना बहुत ही मुश्किल है पर क्या ये बात में सच्चाई है या की ऐसें ही अफवाह वाली बात लगती है।
जैसे ये बात को आप नहीं मान पा रहे हैं वैसे ही दूसरे देश के लोग भी नहीं मान रहे कि भारत का चंद्रयान-3 दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच गया है। हलाकि ये बात 100% सच है की भारत का चंद्रयान- 3 चाँद पर बहुत ही अच्छे तरीके से पहुँच चुका है, और इस बात में कोई सक नही है।
चाँद पर जाने वाले मिशनों के अलग-अलग लक्ष्य होते हैं, लेकिन मुख्य लक्ष्य लोगों को चाँद की सतह पर वापस लाना होता है। लेकिन आज यह उतना ही मुश्किल है जितना 1969 और 1972 के बीच था जब नासा ने छह बार सफलतापूर्वक मनुष्यों को चाँद पर उतारा था। जिसमे एक मिशन, अपोलो 13, उतरने में विफल रहा।
नीदरलैंड में ईएसए के यूरोपीय अंतरिक्ष अनुसंधान और प्रौद्योगिकी केंद्र में वरिष्ठ सिस्टम आर्किटेक्ट और मून फ्यूचर स्टडीज टीम के प्रमुख मार्कस लैंडग्राफ ने कहा, "चांद पर उतरना अभी भी मुश्किल है। इसके लिए चंद्र वातावरण में गहन अनुभव की आवश्यकता होती है।" अब बेहतर नक्शे उपलब्ध हैं, लेकिन वहां होने से बेहतर कुछ नहीं है। क्रेटर और बोल्डर इन-सीटू खतरे पैदा करते हैं जिनका आकलन तब किया जाना चाहिए जब आप सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करते हैं - यानी, बच जाना, क्रैश नहीं होना, जैसे रूस का लूना-25।
शीत युद्ध की अंतरिक्ष दौड़ के बाद से 50 से ज़्यादा सालों में विकसित हुई है, जब नील आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन 1969 में चाँद पर चलने वाले पहले व्यक्ति बने थे। और हमारे पास अंतरिक्ष में नए खिलाड़ी हैं, अंतरिक्ष में जाने वाले ज़्यादा देश, जिनमें भारत भी शामिल है, अपने चंद्रयान मिशन और नियमित उपग्रह प्रक्षेपण के साथ, और यूएई मंगल ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहा है। चीन तो चाँद के दूर वाले हिस्से पर भी उतर चुका है।
कुछ कारण यहाँ बताया गया है, जिससे माना जा सकता है कि इंसान सच में चंद्रमा पर गया था : -
- 1 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रूस के बीच शत्रुता अपने चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी। दोनों देश अंतरिक्ष को जीतने की कोशिश में लगे थे । अपोलो 11 मिशन की Close Monitoring रूस कर रहा था। अगर मून लैंडिंग फेक होता तो रूस इस बात का खुलासा जरुर करता।
- 2 अमेरिका के 12 लोग चांद पर कदम रख चुके हैं और ये अपने साथ 382 किग्रा चांद की मिट्टी, चट्टान लेकर आए हैं जिनका परीक्षण दुनिया के अलग अलग देशों में किया गया है। यहां तक की चांद की मिट्टी में टमाटर भी उगाया गया है।
- 3 नासा के अलावा रूस, जापान, चीन और भारत के Low orbit spacecraft लैंडिंग स्थल की तस्वीरें लेकर साबित कर चुके हैं कि इंसान चांद पर गया था। इन हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरों से यह पता चला कि रेडिएशन के कारण अमेरिका का झंडा सफेद यानि रंगहीन हो गया है।
- 4 नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा पर एक Lunar Laser Ranging Retroflector स्थापित किया था जो आज भी कार्य कर रहा है। इस रिफ्लेक्टर पर पृथ्वी से लेजर किरण छोड़कर चांद और पृथ्वी के बीच की दूरी नापी जाती है।
अमेरिका ने तो 1945 में जापान पर परमाणु बम भी गिरा चुका है लेकिन आज भी बहुत से देश परमाणु हथियार नहीं बना सकते तो इसका मतलब यह नहीं कि यह हुआ नहीं था।
चंद्रयान - 3 में नासा का योगदान : -
नासा के पास विशाल स्पेस नेटवर्क है। पूरी पृथ्वी पर नासा ने अपने बड़े बड़े एंटीना लगा रखे हैं जो सुदूर अंतरिक्ष में गए अंतरिक्ष यानों से संपर्क साधते हैं। प्रज्ञान और विक्रम जो भी डेटा भेजेंगे उसे सुरक्षित तरीके से इसरो तक पहुंचाने में नासा और ESA पूरी मदद कर रहे हैं।
2008 में जिस उपकरण की मदद से चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा था वह नासा का ही उपकरण था। लेकिन नासा की वेबसाइट पर यही लिखा है कि चांद पर पानी की खोज भारत ने किया है।
अमेरिकी प्लेटफार्म फेसबुक और कोरा पर यह लिखना की मून लैंडिंग फेक है तो यह हमारी कृतघ्नता को दर्शाता है। ये कहिए की अमेरिका और यूरोप के लोग हिंदी नहीं समझ पाते नहीं तो उनको पता चल जाता की हम भारतवासी उनके बारे में क्या सोचते हैं।
अपोलो 11 एस्ट्रोनाट्स की धरती पर वापसी : -
- राकेट - सैटर्न V
- स्पेसक्राफ्ट - अपोलो 11
- आर्बिटल माड्यूल - कोलंबिया
- लूनार माड्यूल - ईगल
दशकों तक प्रयास करने और कई अंतरिक्ष यात्रियों की बलि चढ़ने के बाद '20 जुलाई 1969' को नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइक कालिंस चंद्रमा के नजदीक पहुंचते हैं।
चांद पर कहां उतरना है, कौन कौन उतरेगा , कितनी देर वहां रहना है सब पहले से तय था। लूनर माड्यूल ईगल " शांति का महासागर" नामक स्थान पर उतरता है जिसमें नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन थे जबकि इनके साथी माइक कालिंस कोलंबिया में सवार होकर चांद की सतह से 96 किलोमीटर ऊपर से चांद की परिक्रमा कर रहे थे।
ईगल 'Lunar Module 4500' किलोग्राम का यान था जो शक्तिशाली DPS engine से लैस था । यह इंजन 'Aerozine 50' और नाइट्रोजन टेट्राक्साइड के मिश्रण को ईंधन के रुप में प्रयोग कर रहा था।
Eagle LM चंद्रमा की सतह पर 21 घंटे 31 मिनट खड़ा रहा। 2 घंटे 15 मिनट आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन ने मूनवाक किया। बाकी समय वे अपने यान में सोते रहे या रेस्ट करते रहे। उधर कालिंस कोलंबिया से चांद की 21 परिक्रमा कर चुके थे। कालिंस को दुनिया का सबसे "तन्हा इंसान " कहा जाता है क्योंकि वे पृथ्वी से सबसे दूर चांद के डार्क साइड में चले गए थे और उनका संपर्क नासा से कट गया था
चांद पर चहलकदमी करके दोनों यात्री थक गए थे ईगल में आकर वे सो गए और नासा ने उन्हें संदेश दिया कि लौटने की तैयारी करिए। ईगल का डीपीएस इंजन स्टार्ट किया गया जो 15.6 किलो न्यूटन का बल लगाकर ईगल को चांद की सतह से ऊपर उठाकर चांद की कक्षा में स्थापित कर देता है। ( 15.6 किलो न्यूटन का बल लगाकर आप 10 कार, 50 बाइक या 70 किलो के 222 इंसानों को उठा सकते हैं)
ईगल को कोलंबिया से जोड़ा गया और दोनों लोग कोलंबिया यान में शिफ्ट हो गए। चांद का पलायन वेग मात्र 2.38 किलोमीटर प्रति सेकेंड है जबकि पृथ्वी पर पलायन वेग 11 किलोमीटर प्रति सेकेंड है। इसलिए चांद पर से यान को लिफ्ट आफ कराना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है। चांद पर ग्रेविटी भी कम है और हवा का घर्षण बल तो नगण्य मान कर चलिए।
अगर हमारी पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बृहस्पति ग्रह के बराबर होता तो हमारा स्पेस में जा पाना असंभव हो जाता।
कोलंबिया यान में सवार होकर तीनों यात्री 8 दिन की यात्रा करके, यान की स्पीड कंट्रोल करते हुए 24 जुलाई 1969 को प्रशांत महासागर में सुरक्षित लैंड करते हैं।
इसे भी जाने - अगर अंतरिक्ष से पृथ्वी पर 1 किलो का पत्थर गिरे तो क्या होगा?