एक बार कि बात है, किसी चीनी पत्रकार ने दुनिया के सबसे अमीरों नाम में शामिल "जैक मा" से पूछा, आपके अनुसार समृद्धि पानें का 'मूलमंत्र' क्या है ?
"जैक मा" का जवाब बहुत ही ज्ञानप्रद था, ओर बहुुुत ही सरल भाषा मे समझाया। अपको कुुुछ नहीं, बस अपनी ऊर्जा को बेहतर कामों में लगाना। हमेशा मानसिक ऊर्जा का उपयोग करे, नेगेटिव काम ओर नेगेटिव लोगों से दूरी बनाइये। समय का उपयोग अच्छे कार्यो के लिए करे, जितना हो सके अमीर के तरह सोचे न कि अमीर के तरह बनने का कोशिश करे। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया - सोचिए , बाथरूम में टपकते नल को घुमा घुमाकर आप 10 मिनट में उसे बंद तो कर लेते हैं , परंतु इस चक्कर में कितनी ऊर्जा व्यर्थ हो जाती है । अमीरी कुछ और नहीं , रोजाना घंटों की व्यर्थ ऊर्जा को बचाने की कामयाबी है । कुछ ऐसा ही मेक्सिको के सबसे अमीर व्यक्ति "कार्लोस स्लिम" का कहना है । वह कहते हैं- आप छोटे - छोटे तनाव से जितना हो सके बचे रहें और जो भी काम कर रहे हैं , उसमें खुद को बेहतरीन बनाते जाएं । समृद्धि अपने आप आपके पास आती जाएगी । हमारी दिक्कत यह है कि हम समृद्धि को लेकर हमेशा एक मानसिक गतिरोध की अवस्था में रहते हैं । हम अमीर तो होना चाहते हैं , मगर अमीरों के व्यवहार और उनके रहन - सहन के प्रति एक स्थाई नफरत का भी भाव रखते हैं । हम उनकी बातें सुनना नहीं चाहते , जबकि उनकी नकल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते । जरूरी यह है कि हम समृद्धि पाने के लिए दौलतमंदों जैसी मानसिकता रखें । मन में धन तो रखें , परंतु मन को उसमें डुबाएन रखें । धन का सार्थक उपयोग करना सीखें । विनोबा भावे कहते थे , धन को फुटबॉल की तरह समझें । उसे ग्रहण करें और फिर दूसरों को पास कर दें । उनके कहने का आशय था कि असली समृद्धि तभी है , जब आपकी समृद्धि का लाभ दूसरों को भी हो । समृद्धि , भक्ति हमेशा इस सच्चाई से आपको जोड़े रखती है कि दूसरों की तरक्की आपकी समृद्धि का ही एक हिस्सा है ।